Tuesday, January 25, 2011

Irregular length/language की ग़ज़ल की कोशिश

और कितनी पतली दाल करे
आओ इकोनोमी पर सवाल करे

कब तक हम कीमत और वो आश्वासन देंगे
चलो अब तो कुछ बवाल करे

बोर हो गए है ख़ाली बटुए देख कर
अब तो कुछ अशांति बहाल करे

कीमतें, टैक्स, रोड पर गड्ढे सब बढे और हम चुप रहे
किसी ने कहा था एक थप्पड़ के बाद आगे दूसरा गाल करे

दिन में दो बार से रविवार के लंच तक सिमट गया प्याज
और कितना जैन ना होने का मलाल करे